अब तो मेरी उस
अमेरिका-यात्रा के चार साल बीत गए | यह कोरोना-कोप के पहले की बात है | उस वर्ष मेरे
पौत्र अनुनीत ने वहीं यूनिवर्सिटी ऑफ़
सदर्न कैलिफ़ोर्निया से एम्.एस. की डिग्री ली थी, और बेटे-बहू के साथ हमलोगों को
उसकी ग्रैजुएशन सेरेमनी (१० मई, २०१९) में
शामिल होना था | लखनऊ से हमलोग ८ मई को ही दोपहर बाद उड़े और दिल्ली तथा अबू धाबी
होते ९ मई को दोपहर कैलिफ़ोर्निया की
राजधानी लास एंजेलिस पहुंचे | अबू धाबी से लास एंजेलिस की उड़ान १९ घंटे की थी –
लगभग ११ बजे दिन से दूसरे दिन २ बजे दोपहर बाद तक |
कल्पना करें एक छोटे-से
हालनुमा कमरे में २००-२५० लोग १९ घंटे बिना पीठ सीधा किये, पैर फैलाए, बैठे रहें -
बीच-बीच में बस वाशरूम जाने की मोहलत – और सारी खिड़कियाँ भी बंद रहें, समय के
व्यतिक्रम के कारण (क्योंकि हम पूरब से पच्छिम जा रहे थे और धरती बराबर उल्टा पच्छिम
से पूरब घूम रही थी !) तो यह कैसा गोरखधंधा हो सकता था ! वक़्त, रोशनी, धरती, आसमान – सब कुछ
गड्ड-मड्ड! सीट के सामने के स्क्रीन पर वक़्त-बेवक्त नीचे का कुछ नज़ारा दीखता था
जिससे पता चलता कि हम कज़ाकिस्तान, रूस, आर्कटिक ओशन,
ग्रीनलैंड के ऊपर से होते हुए उत्तरी अमेरिका में अलास्का की ओर से एक अर्द्ध
गोलाकार बनाते हुए लास एंजेलिस पहुँचने वाले हैं | आप उस रोमांच और अनजानी आशंकाओं
की कल्पना ही कर सकते हैं, क्योंकि यात्रा के अनुभवों में प्रस्थान और गंतव्य का
वह महत्त्व नहीं हो सकता जो गतिशील सफ़र का होता है | सच पूछिए तो सफ़र का अनुभव ही तो व्यक्तिगत होता है, चलने और
पहुँच जाने के बाद का अनुभव तो भीड़ का अनुभव ही होता है ज़्यादातर |
लेकिन चार साल पहले की इस
यात्रा की बात तो मैं लगभग भूल ही चुका था | तस्वीरें और विडिओ भी सब लैपटॉप में
कहीं गुम थे | लेकिन इधर संध्या सिंह के अमेरिका के उसी प्रदेश के रोचक यात्रा-वृत्तान्त
ने अचानक उसकी याद ताज़ा कर दी, और मुझको लगा कि वहां की वह मनोरम दृश्यावली ज़रूर
सामने आनी चाहिए | फोटोग्राफी का मेरा शौक़ दशकों पुराना रहा है, और
यात्रा-वृत्तांतों में तस्वीरों की अपनी आभा होती है | इसीलिए यह पुराना
यात्रा-विवरण भी शायद इन तस्वीरों की वजह से शायद कुछ रोचक बन जाए | फेसबुक पर
इतना लम्बा सचित्र वृत्तान्त तो नहीं अंटता,
लेकिन अपने निजी पारिवारिक ब्लॉग पर इसे डालना मुझे ठीक लगा जिसे कुछ अपने अन्तरंग परिवारजन और
मित्र तो देख ही सकेंगे | तस्वीरों का क्रम ऊपर से नीचे है और कुछ चुनी हुई
तस्वीरें ही यहाँ देखी जा सकती हैं | बहुत सारी तफसीलें तो अब याद भी नहीं रहीं,
पर मुख्य बातें ज़रूर यहाँ जानी जा सकेंगी | कहावत है कि एक तस्वीर हज़ार शब्दों से
ज्यादा कह सकती है, इसलिए यहाँ तस्वीरों की ही प्रधानता रहेगी और इसमें यात्रा-संस्मरण
बहुत कम ही होगा |
लास एंजेलिस एयरपोर्ट पर ९
मई को अनुनीत हमलोगों को लेने आया था | तस्वीरें वहीँ से शुरू होती हैं | अगले दिन
उसकी ग्रेजुएशन सेरेमनी यूनिवर्सिटी के हाल में थी जिसकी तस्वीरें सब कुछ बता देती
हैं, जिनमें एक विडिओ भी है | लगभग २००-२५० स्नातक थे, लेकिन कोन्वोकेशन में
डिग्री-प्रदान की यह सारी प्रक्रिया एक-डेढ़ घंटे में सेकेण्ड की सुई की चाल से
यंत्रवत संपन्न हो गयी | समय का समायोजन कैसे हो सकता है यह एक विशेष रोमांचक
अनुभव था | अमेरिका में समय के महत्त्व का यह विशिष्ट अनुभव मन पर एक अमिट छाप छोड़ गया |
सबसे पहले अनु. हमलोगों को
वहां ले गया जिस हॉस्टल में वह रहता था जो युनि. कैंपस में था | लेकिन
सत्र-समाप्ति के पहले ही, हमलोगों की अगवानी में, उसने एक छोटा-सा फ्लैट पास ही
(७० किमी) के उप-नगर रांचो कूकामोंगा में ले लिया था जहाँ रात में हम रहने चले गए | इस बीच अनु. ने एक कार भी किश्त
पर ले ली थी जिस पर भ्रमण की सारी सुविधाएं केन्द्रित रहीं | उस फ्लैट के पास की
कुछ तस्वीरें यहाँ देखी जा सकती हैं | वहाँ पास ही में एक भव्य शौपिंग सेंटर और
मार्केट वगैरह थे, जहाँ हम शाम में घूमते थे और अक्सर पास के रेस्तरांओं में खाना
खाते थे |
अगले ही दिन से हमलोगों का
आस-पास के दर्शनीय स्थलों – ज़्यादातर समुद्र-तटीय स्थलों – का भ्रमण शुरू हो गया था | ११ को अनु. हमलोगों
को प. हॉलीवुड के फैशनेबुल मार्किट ग्रोव्ज़ ड्राइव में ले गया जहाँ की कुछ
तस्वीरें बताती हैं, आज के दिन भी वहाँ की रौनक कितनी शानदार है | १३ को हम प्रशांत महासागर (प्र.
महा.) के किनारे मालिबू बीच और मुगू पॉइंट रॉक्स देखने गए | प्र. महा. के किनारे
का सागर-अनुभव एक सर्वथा अलौकिक अनुभव जैसा लगा | १८ को हमलोग द. कैलिफ़ोर्निया के
तटीय नगर सैन दीगो गए | फिर २१ को हॉलीवुड
का वह इलाका देखा जहां बड़े-बड़े स्टार रहते है | यह एक पहाड़ी पर बसा इलाका है | २३ को पास के ही नगर इर्वाइन में स्थित ‘डिज्ने
लैंड’ घूमने गए | वहां के कुछ चित्र और विडिओ यहाँ
देखे जा सकते हैं |
अनु. ने २५ को सैन
फ्रांसिस्को (सैनफ्रा.) चलने का कार्यक्रम बनाया जो कैलिफ़ोर्निया के उत्तरी छोर
(लगभग ७०० किमी) पर स्थित है | हम उसके पास के ही उप-नगर सैन होसे में एक किराए के
कॉटेज में रुके | वहां ये व्यवस्था बन गयी है कि लोग अपना कॉटेज एक होटल के कमरों की तरह किराए पर लगाते हैं जो पहले से ऑन लाइन
बुक हो जाता है, जो अनु. ने कर रखा था | (अब यह व्यवस्था हमारे यहाँ भी शुरू हुई
है |) प्र.महा. के किनारे सैनफ्रा. की स्थापना संत फ्रांसिस के नाम पर १७७६ में
हुई थी और यह यू.एस. के सबसे प्रमुख समुद्र-तटीय बंदरगाहों/शहरों में गिना जाता है
| वहीं रहते हुए हमलोग वहाँ के विश्व-विख्यात गोल्डन गेट ब्रिज को देखने गए और फिर अगले दिन
गूगल के मुख्यालय में भी घूमने गए |
यहाँ एक तस्वीर में मैं एक श्वेत
पुलिसमैन के साथ बैठा हूँ | अमेरिका में रंगभेद का प्रश्न आज भी चर्चा में रहता है
| जब कुछ समय (एक साल) बाद मिनेसोटा राज्य के मिनेपोलिस में काले अमरीकी जॉर्ज
फ्लॉयड की एक श्वेत पुलिसमैन ने अपने घुटने से गर्दन दबाकर जान ले ली थी, तब मैंने
फेसबुक पर एक दिन यह तस्वीर लगाई थी और एक कविता भी पोस्ट की थी (नीचे देखें) तो
मेरे एक भारतीय अमरीकी मित्र ने वहां से अचरज प्रकट किया था कि यह खतरनाक संयोग मेरे
साथ कैसे घटित हुआ था | तो बात ऐसी हुई थी कि एक शाम सैनफ्रा. में समुद्र किनारे
शौपिंग एरिया में हमलोग घूम रहे थे | सैनफ्रा. का अक्षांश लगभग ४० डिग्री है, और
उस दिन समुद्र के किनारे उस इलाके में हड्डी कंपाने वाली तेज़ हवा चल रही थी (मेरी
टोपी जिसकी गवाह है)| बच्चे लोग मुझको एक ओट वाली जगह में बैठाकर शौपिंग करने चले
गए थे | मैंने देखा मेरे मोबाइल की बैटरी एकदम डिस्चार्ज हो गयी थी | बेहद ठंढ लगने
की वजह से मैं उनलोगों को वापस बुलाना चाहता था | तभी मैंने देखा यह पुलिसमैन अपना
कुत्ता लिए सामने खड़ा है | मैंने उससे अपनी कठिनाई बताई तो उसने मुझसे मेरे पोते
का नंबर लेकर अपना फोन मिलाया और उससे मेरी बात करा दी | उस पुलिसमैन के सहयोग-भाव
से आश्वस्त होकर मैंने उससे अपने साथ एक तस्वीर के लिए कहा जो मेरे मोबाइल में
सामने खड़ी एक लड़की खींचने को तैयार हो गयी | यह वही तस्वीर है जो मेरे लिए अब बहुत
यादगार बन चुकी है |
दो-तीन दिन बाद हमलोग बगल
के राज्य नेवादा के अपने कसीनोज़ के लिए मशहूर शहर लास वेगास में गए जहां हमलोग एक मशहूर
होटल स्त्राट में रात में रुके, क्योंकि लास वेगास का बेशुमार जलवा रात में ही
देखने की चीज़ है | वहां की कुछ तस्वीरें ही इस बात की तस्दीक करती हैं | हमारे
कूका मोंगा निवास के पास ही विक्टोरिया गार्डन्स इलाका है जो एक बहुत शानदार
शौपिंग एरिया है | रोशनीदार बग्गी वहीँ शौक़ीन लोगों को मार्केट की सैर कराती है |
पास ही के मोंटेबेलो में वहाँ एक और शौपिंग एरिया सिटाडेल ड्राइव है जहां पहली बार
मुझको ४-४-५-५ मन की पचासों औरतें घूमती दिखीं | बच्चे लोग तो शौपिंग कर रहे थे
लेकिन मैं वहीँ एक बेंच पर बैठ कर गुपचुप वहां की ऐसी तस्वीरें खींचता रहा था |
अमेरिका के इन्हीं दृश्यों-घटनाओं पर आधारित मेरी कुछ अंग्रेजी कवितायें भी आप
यहाँ नीचे पढ़ सकते हैं, जो मैंने वहीँ रहते हुए लिखी थीं |
हमारा अमेरिका-प्रवास अब
समाप्ति की ओर बढ़ रहा था | जून आ चुका था और २१ को हमारी वापसी थी | ४ को समुद्र-तटीय
सांता मोनिका होते हुए हमलोग यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया गए जो उस राज्य के कई
विश्वविद्यालयों में बहुत प्रमुख है | मेरे एक परिचित अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के एशिया-इतिहास
विशेषज्ञ डा. स्टैनले वोल्पेर्ट वहीँ प्रोफ़ेसर रहे थे जिन्हें मैं अपनी अंग्रेजी
में सद्यः प्रकाशित डा. राजेंद्र प्रसाद की जीवनी की एक प्रति भेंट करना चाहता था | पर दुर्भाग्य ऐसा कि प्रो. वोल्पेर्ट
का मेरे अमेरिका जाने से कुछ ही पहले फ़रवरी में ९२ वर्ष की उम्र में निधन हो गया
था | जब मैंने राजेन्द्र बाबू वाली किताब लिखना शुरू किया था तब उन्होंने मेरा
बहुत उत्साह-वर्द्धन किया था, और उनसे मेरा बराबर पत्राचार होता आया था | वे उम्र
में मुझसे १०-१२ साल बड़े थे, पर कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी में उनका प्राध्यापन-काल
(१९५९-२००२) ठीक-ठीक मेरे अपने शिक्षण-काल (१९५९-२००२) तक समकालीन रहा था | गाँधी, नेहरु और जिन्ना पर लिखी उनकी जीवनियाँ विश्व-प्रसिद्ध हैं
| अपनी श्रद्धांजलि के रूप में मैंने उनके यूनिवर्सिटी डिपार्टमेंट में जाकर उनकी
सेक्रेटरी मिज़ एलिज़ाबेथ के द्वारा अपनी पुस्तक की भेंट-प्रति श्रीमती वोल्पेर्ट को
भेंट भिजवा दी | वहां की भी कुछ तस्वीरें स्मृति-चिन्ह-स्वरुप यहाँ देखी जा सकती
हैं | यात्रा-प्रवास के अंत में १५ जून को हमलोग द. कैलिफ़ोर्निया में लास वेगास के
पास के ही बिग बिअर लेक घूमने गए जो वहां सैन बर्नार्डिनो की मनोरम पहाड़ियों के
बीच एक २२ किमी घेरे में फैली मनोहारी झील है जिसमें लोग खूब बोटिंग करते हैं |
हमारे लौटने के दिन करीब आ
रहे थे | उत्तर से दक्षिण पूरी कैलिफ़ोर्निया में सैलानियों के घूमने-देखने की लगभग हर जगह अनुनीत ने हमलोगों
को घुमा दिया था और डेढ़ महीने की वह अवधि देखते-देखते ही बीत गयी | वहां की दो-तीन
बातों ने मेरे मन पर गहरा प्रभाव छोड़ा | मैंने पहली बार देखा कि सूरज की चमकती
रोशनी वहां शाम में ७-८ बजे तक चारों ओर फैली दीखती थी | जैसे घंटा-घर की यह
तस्वीर जहाँ घडी में शाम के ७.३० बजे हैं और धूप की आभा चारों ओर अभी भी फैली
दीखती है | दूसरी बात जिसने मन पर अपनी छाप छोड़ी – सडकों के किनारे कहीं भी
दूकानों की कतारें नहीं दीखीं | सड़कें बिलकुल साफ-सुथरी, कहीं कागज़ की एक चिंदी भी
नहीं | सडकों के बगल की दीवारें भी साफ-सुथरी सजी हुईं, कहीं कोई पोस्टर या
विज्ञापन नहीं | सडकों पर हर जगह गाड़ियां एक सम-चाल में अपने-अपने लेन में अनुशासित
ढंग से चलती हुईं | एक और खूबसूरत नज़ारा – सडकों के किनारे के बिजली पोलों पर और
अक्सर बगल के भवनों पर बराबर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हुए दीखे | कई सडकों पर देखा बिजली पोलों पर लगातार सेना
के योद्धाओं के चित्र शोभित हैं | यूनिवर्सिटी कैंपस में भी हर जगह बिलकुल
उन्मुक्त और शांत, हरा-भरा मनोरम वातावरण देखा |
तभी मुझे याद आ रही है सैन
फ्रांसिस्को की वह विश्व-विख्यात दूकान ‘सिटी लाइट्स’ जहां अनु. ने थोड़ी देर के लिए अपनी कार रोकी थी, और मुझे
याद हो आई वहां के प्रसिद्ध बैठकबाज एलेन गिन्सबर्ग की लम्बी कविता ‘अमेरिका’ की वह एक पंक्ति -
America after all it is you and
I who are perfect not the next world.
और यहीं मैं अपनी वहां अमेरिका में लिखी पहली २ (और फिर
भारत आकर लिखी -१) कवितायें भी दे रहा हूँ जो अमेरिका की याद को ताज़ा रखने के लिए
ही लिखी गयी थीं |
The Flight
They are all going
One after another
As if in a flight boarding Q
Their boarding cards
Being mechanically checked
By huge humming machines
The flight is delayed
Or has it landed before time
They won’t tell you
In explicit language
Holding their walkie-talkie
Smartly in their hand
Or tucked in their belts
The display boards would
Flicker misleading information
Their check-ins have been
Elaborate with streched out arms
Like a Christ on the tall Cross
With your chest, hips, thighs
Patted with trained palms
And electronic sensors
All belongings as cabin baggage
Have to be screened minutely
For contraband materials
Some are trundled in wheel-chairs
Shown some respect and leniency
And priority in the boarding queue
They are put first in the flight
Pushed up the ramps with caution
The engines are mildly humming
The flight must take off in time
But there is a quiver somewhere
Would the flight reach its
Destination safe and on time?
No one has an answer.
LA Carnival
Here I sit under a large umbrella
In this sun-drenched arcade
On this wide pavement
With grey and maroon tiles
On a bench at this citadel
Of garish neon-blazing shops
And I see passing by me as I sit
Watching in fascination
A multi-coloured mass of
Men, women and children
Young petite girls, ample-bosomed
In low neck cleavage-revealing shirts
Hurrying on with long luminous legs
On pointed stilleto shoes.
It’s almost an unending trail,
As if, of Chaucer’s pilgrims
On way to some jolly shrine
Of a Mall or some eatery
Plump, sumptuous women
In tight hot pants and skimpy
Blouses with sagging loads.
In them, I see, many a Wife of Both
A priest and the fourth husband
Crossing each other’s path
And, perhaps, a Mr Squarejaw,
May be also a Mr Summons,
Walking with a bearded Ghost
Hand in hand with Ms Priority
All in great hurry rushing forward
Or somewhereward to some
Unknown and transient destination.
Hey, Obesity,
Thy name is woman!
The ground-pounders walking
Arm-in-arm with equal podgy
Heavy-weighters, burly men with
Bushy whiskers,swinging pony-tails
Are they Chaucer’s men, or Auden’s
In a suave blubbery New World ?
When I wake up from my trance
I see an icecream cone
Facing my bespectacled nose
Thrust forward by my granddaughter
In front of me, standing close.
Black
Breath
Neck
under knee
Or knee over neck
Either way it makes
Breathing impossible
Chokes your gullet
There's a blockage
Between the air
Within and without
As if your lungs
Would burst out
Of your burning chest
Your eyes will pop
Out of their sockets
Blood ready to ooze
Out of your nose
Your mouth spilling
Dark saliva mixed with
Your groaning voice
I can't breathe please
Let me have some air
Let me breathe, I'm
Choking, dying for
Breath, for some air
A
kind of premonition
For
millions to die
Choking,
gasping
For
oxygen as the
White
virus hungrily
Devours
the black
Antibodies
helpless
Before
a system of survival
That
is failing fast
Text
& Photos (C) Dr BSM Murty